WELCOME TO DIL Ke PAaS

कभी कभी सोचता हूँ ,
चाँद की बजाय मैं तुझे ही देख लूँ|
लेकिन क्या करूँ,
पूर्णिमा से पहले ये निकलता ही नहीं ||
देखने की अक्सर चाहत बनता हूँ अपने दिल मैं ,...
लेकिन तेरी यादें हर पल भटकाती रहती हैं ||
इस जहान मैं याद करूँ तो क्या - क्या करूं। .
क्यों कि तेरे बिना मुझे और कुछ याद आती ही नहीं ||
अब तक लगता था मुझे तेरी आवाज़ से शादिगी थी।|
लेकिन अब तो ,
मुझे तुझसे मोहब्बत होती जा रही है ||
कैसे ना कहूँ , मुझे जीने की चाहत है तेरे साथ
क्यों कि चाहत भी तू ही है और जीने की बजय भी
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